
उत्तर प्रदेश की बहुचर्चित 69000 शिक्षक भर्ती का मामला एक बार फिर सियासी गलियारों में गर्मी ला रहा है। राजधानी लखनऊ में अभ्यर्थियों का विरोध प्रदर्शन लगातार दूसरे दिन जारी रहा। शनिवार को बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह के आवास का घेराव करने के बाद रविवार को ग़ुस्साए अभ्यर्थियों ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती के घर के बाहर नारेबाजी कर दी।
नारे भी कुछ यूँ थे — बहनजी न्याय करो, सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करो!”
लखनऊ की सड़कों पर यह आवाज़ इतनी गूंज रही थी कि शायद सीएम हाउस की खिड़कियाँ भी कह रही हों — “भाई, कुछ तो करो!”
क्या है अभ्यर्थियों की शिकायत?
अभ्यर्थियों का आरोप है कि प्रदेश सरकार की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कमजोर रही, जिसके चलते उन्हें पाँच साल बाद भी नौकरी नहीं मिल पाई।
वे कहते हैं कि सरकार ने जानबूझकर मामले को “पेंडिंग मोड” में डाल रखा है — जैसे कोई पुराना WhatsApp मैसेज जिसे ‘Mark as unread’ कर दिया गया हो।
पुलिस और प्रदर्शनकारियों में हल्की झड़प भी हुई, लेकिन अभ्यर्थी पीछे हटने को तैयार नहीं। आख़िर पाँच साल का संघर्ष कोई छोटा गेम थोड़ी है — यह ‘पबजी नहीं, भर्ती का रणभूमि’ है।
सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 28 अक्टूबर को
अभ्यर्थियों को अब 28 अक्टूबर का बेसब्री से इंतज़ार है — जिस दिन सुप्रीम कोर्ट में मामला सुना जाएगा। उनकी उम्मीद है कि अगर इस बार सरकार ने “मजबूत पैरवी” की, तो शायद पांच साल की लाइट जाने के बाद आखिरकार बिजली आ जाए!

वरना उनका कहना है — “अगर सरकार सोई रही, तो आंदोलन का अलार्म फिर बजेगा!”
सबको मिला ‘प्रोटेस्ट शेयर’
लखनऊ में इस विरोध का असर इतना है कि हर पार्टी अब “शिक्षक भर्ती” के पोस्टर पर अपनी मुहर लगाने में जुटी है।
बीएसपी कह रही — “हमने बुलाया नहीं, लोग खुद आए।”
बीजेपी कह रही — “पैरवी मजबूत थी, लेकिन कोर्ट थोड़ा सख्त निकला।”
और कांग्रेस — हमेशा की तरह कह रही — “देखा! हम तो पहले से कह रहे थे।”
69000 भर्ती का मामला अब सिर्फ कोर्ट का नहीं, जनता की सहनशक्ति का टेस्ट बन चुका है। 28 अक्टूबर को फैसला जो भी आए — मगर यह तय है कि यूपी में शिक्षकों का संघर्ष अब सिलेबस का हिस्सा बन गया है।
